क्या है तालिबान और कैसे अफगानी महिलाओं के लिए बना सिरदर्द
अफगानिस्तान को पाषाणयुग में पहुंचाने के लिए तालिबान को जिम्मेदार माना जाता है। तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है स्टूडेंट (छात्र)। ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं। तालिबान इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन हैं। इसका नेता मुल्ला मोहम्मद उमर था।
1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला
उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था। उसने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल
घोषित कर रखा था। उसे सिर्फ पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने
ही मान्यता दे रखी थी।
1990 की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय माना जाता
है। इस दौर में सोवियत सेना के अफगानिस्तान से वापस जा रही थी। पश्तून
आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमा ली थीं। इस
आंदोलन का उद्देश्य था कि लोगों को धार्मिक मदरसों में जाना चाहिए। इन
मदरसों का खर्च सऊदी अरब द्वारा दिया जाता था।
तालिबान ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्तून इलाकों में वायदा किया
था कि अगर वे एक बार सत्ता आते हैं तो सुरक्षा और शांति कायम करेंगे। वे
इस्लाम के साधारण शरिया कानून को लागू करेंगे। हालांकि कुछ ही समय में
तालिबान लोगों के लिए सिरदर्द साबित हुआ। शरिया कानून के तहत महिलाओं पर कई
तरह की कड़ी पाबंदियां लगा दी गईं थी। सजा देने के वीभत्स तरीकों के कारण
अफगानी समाज में इसका विरोध होने लगा।
अफगानी महिला को नौकरी करने की इजाजत नहीं दी जाती थी।
- लड़कियों के लिए सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दरवाजे बंद कर दिए गए थे।
- किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना घर से निकलने पर महिला का बहिष्कार कर दिया जाता है।
- पुरुष डॉक्टर द्वारा चेकअप कराने पर महिला और लड़की का
बहिष्कार किया जाएगा। इसके साथ महिलाओं पर नर्स और डॉक्टर्स बनने पर पाबंदी
थी।
- तालिबान के किसी भी आदेश का उल्लंघन करने पर महिलाओं को निर्दयता से पीटा और मारा जाएगा।
Source: http://www.bhaskar.com/article/INT-afghan-president-election-and-taliban-4571364-PHO.html?seq=3
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