1. रडार दुनिया के हर हिस्से को कवर नहीं करता। खासकर समुद्र
के ऊपर यह तकनीक काम नहीं करती। समुद्र के ऊपर उड़ान भरते हुए पायलट को
रेडियो ट्रांसमिशन के जरिए अपनी पोजिशन बतानी होती है। निश्चित समयावधि के
अंदर विमान के पायलट और को-पायलट रेडियो सिगनल्स के जरिए कंट्रोल रूम को
अपनी स्थिति बताते रहते हैं, ताकि वे रास्ता ना भटक जाएं।
2. अंतरिक्ष के रडार सिविलियन एयरक्राफ्ट की जानकारी उपलब्ध नहीं करवाते।
3. विमान में लगे ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम से लोकेशन की
जानकारी पायलट को तो प्राप्त हो सकती है, लेकिन यह डाटा जमीन पर मौजूद एयर
ट्रैफिक कंट्रोलर तक नहीं पहुंचता।
4. अगर प्लेन दक्षिण चीन सागर में कहीं क्रैश हुआ होगा, तो ऐसी
स्थिति में विमान के इमरजेंसी ट्रांसमीटर्स पानी के भीतर से सिगनल्स नहीं
भेज सकते। यह भी प्लेन की सही लोकेशन मालूम न चलने का कारण हो सकता है।
5. विमान का ब्लैक बॉक्स ऐसे साउंड सिगनल्स भेजता है, जो पानी
में प्रसारित होते हैं, लेकिन इन सिगनल्स की रेंज लिमिटेड होती है। दक्षिण
चीन सागर बहुत बड़ा है। ऐसे में, विमान को खोजना सागर में सूई खोजने जैसा
है।
पूरा समाचार यहां है।
Source link http://www.bhaskar.com/article/INT-reason-behind-missing-of-malaysia-airlines-mh370-4548477-PHO.html?seq=2
No comments:
Post a Comment