मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि हनीमून के
दौरान अपने जीवनसाथी से संसर्ग से इनकार करना किसी प्रकार का अत्याचार नहीं
है। अदालत ने इसके साथ ही इस आधार पर एक दंपति की शादी को भंग करने के
संबंध में परिवार अदालत द्वारा दिए गए फैसले को भी खारिज कर दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद कभी कभार कमीज और पैंट पहनकर आफिस जाती है और आफिस के काम के संबंध में शहर जाती है तो यह उसके पति के प्रति उसका अत्याचार नहीं है।
न्यायाधीश वी के ताहिलरमानी और न्यायाधीश पी एन देशमुख ने इस सप्ताह की शुरुआत में दिए गए अपने एक फैसले में कहा, ‘शादीशुदा जिंदगी का संपूर्णता में आकलन किया जाना चाहिए तथा एक विशेष अवधि में इक्का दुक्का घटनाएं अत्याचार नहीं मानी जाएंगी।’ पीठ ने कहा कि बुरे व्यवहार को लंबी अवधि में देखा जाना चाहिए जहां किसी दंपति में से एक के व्यवहार और गतिविधियों के कारण रिश्ते इस सीमा तक खराब हो गए हों कि दूसरे पक्ष को उसके साथ जिंदगी बिताना बेहद मुश्किल लगे और यह मानसिक क्रूरता के बराबर हो।
पूरा समाचार यहां है।
Sources: http://zeenews.india.com/hindi/news/india/refusal-to-have-sex-during-honeymoon-is-not-cruelty-bombay-hc/204152
अदालत ने यह भी कहा कि यदि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद कभी कभार कमीज और पैंट पहनकर आफिस जाती है और आफिस के काम के संबंध में शहर जाती है तो यह उसके पति के प्रति उसका अत्याचार नहीं है।
न्यायाधीश वी के ताहिलरमानी और न्यायाधीश पी एन देशमुख ने इस सप्ताह की शुरुआत में दिए गए अपने एक फैसले में कहा, ‘शादीशुदा जिंदगी का संपूर्णता में आकलन किया जाना चाहिए तथा एक विशेष अवधि में इक्का दुक्का घटनाएं अत्याचार नहीं मानी जाएंगी।’ पीठ ने कहा कि बुरे व्यवहार को लंबी अवधि में देखा जाना चाहिए जहां किसी दंपति में से एक के व्यवहार और गतिविधियों के कारण रिश्ते इस सीमा तक खराब हो गए हों कि दूसरे पक्ष को उसके साथ जिंदगी बिताना बेहद मुश्किल लगे और यह मानसिक क्रूरता के बराबर हो।
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