गोरखपुर : जांच का डर कहें या मजबूरी। गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर
यात्रियों को पानी के नाम पर रेल नीर मिल रहा है। लेकिन, अन्य छोटे
स्टेशनों पर अनधिकृत पानी की बोतले ही बिक रही हैं। वह भी अधिक दाम पर। यही
नहीं ट्रेनों में भी वेंडरों की मनमानी जारी है। दिल्ली और मुंबई जाने
वाली गाड़ियों में धड़ल्ले से अन्य ब्रांडों की पानी की बोतले बिक रही हैं।
कोई पूछने वाला नहीं।
शनिवार, शाम 4.15 बजे के आसपास। प्लेटफार्म नंबर 2 पर 12555 गोरखधाम एक्सप्रेस दिल्ली (हिसार) जाने के लिए खड़ी थी। आरक्षित कोचों के अलावा घंटों पहले लाइन में लगे यात्री भी सामान्य बोगियों में चढ़ गए। प्लेटफार्म लगभग शांत हो गया। अचानक एक ठेला प्लेटफार्म पर ट्रेन के समानांतर दौड़ने लगा। इंजन की तरफ से शयनयान बोगी के गेट पर ठेला रुका और दो लड़कों ने उस पर लदे अन्य ब्रांड के पानी की बोतलों के पैकेट को कोच में चढ़ा दिया। ऐसे ही अन्य बोगियों में भी करीब दो दर्जन पानी की बोतलों का पैकेट शयनयान श्रेणियों में चढ़ाया गया। महत्वपूर्ण ट्रेन गोरखधाम में यह हाल है। इसमें पेंट्रीकार भी नहीं है। साइड वेंडिंग है। सवाल यह है कि क्या साइड वेंडिंग में रेल नीर की बिक्री का प्रावधान नहीं है। अगर है तो उसकी सप्लाई क्यों नहीं होती। जबकि, रेलवे के पास पर्याप्त मात्रा में रेल नीर है। रेल प्रशासन का कहना है कि रेल नीर की अनुपलब्धता में ही अन्य अधिकृत ब्रांड बेचे जाएंगे। जब स्टेशन पर रेल नीर बिक सकता है तो ट्रेन में क्यों नहीं।
यह तो महज नजीर है। इस तरह की घटनाएं रोजाना लंबी दूरी की गाड़ियों में होती है। ट्रेनों में अन्य ब्रांड की बोतले ही बेची जा रही हैं। वह भी 15 की बोतल 20 रुपये में। कहीं कोई पुरसाहाल नहीं है। कमीशन के खेल में रेल नीर फेल साबित हो रही है। रेल नीर की एक बोतल बेचने पर वेंडर को कमीशन के रूप में 2 से 3 रुपये मिल पाता है। जबकि, अन्य कंपनियों की बोतलों पर कम से कम 5 रुपये की आमदनी हो जाती है। ऊपर से अतिरिक्त दाम भी वसूलते हैं।
पूरा समाचार यहां है।
source: http://www.jagran.com/uttar-pradesh/gorakhpur-city-11213623.html
शनिवार, शाम 4.15 बजे के आसपास। प्लेटफार्म नंबर 2 पर 12555 गोरखधाम एक्सप्रेस दिल्ली (हिसार) जाने के लिए खड़ी थी। आरक्षित कोचों के अलावा घंटों पहले लाइन में लगे यात्री भी सामान्य बोगियों में चढ़ गए। प्लेटफार्म लगभग शांत हो गया। अचानक एक ठेला प्लेटफार्म पर ट्रेन के समानांतर दौड़ने लगा। इंजन की तरफ से शयनयान बोगी के गेट पर ठेला रुका और दो लड़कों ने उस पर लदे अन्य ब्रांड के पानी की बोतलों के पैकेट को कोच में चढ़ा दिया। ऐसे ही अन्य बोगियों में भी करीब दो दर्जन पानी की बोतलों का पैकेट शयनयान श्रेणियों में चढ़ाया गया। महत्वपूर्ण ट्रेन गोरखधाम में यह हाल है। इसमें पेंट्रीकार भी नहीं है। साइड वेंडिंग है। सवाल यह है कि क्या साइड वेंडिंग में रेल नीर की बिक्री का प्रावधान नहीं है। अगर है तो उसकी सप्लाई क्यों नहीं होती। जबकि, रेलवे के पास पर्याप्त मात्रा में रेल नीर है। रेल प्रशासन का कहना है कि रेल नीर की अनुपलब्धता में ही अन्य अधिकृत ब्रांड बेचे जाएंगे। जब स्टेशन पर रेल नीर बिक सकता है तो ट्रेन में क्यों नहीं।
यह तो महज नजीर है। इस तरह की घटनाएं रोजाना लंबी दूरी की गाड़ियों में होती है। ट्रेनों में अन्य ब्रांड की बोतले ही बेची जा रही हैं। वह भी 15 की बोतल 20 रुपये में। कहीं कोई पुरसाहाल नहीं है। कमीशन के खेल में रेल नीर फेल साबित हो रही है। रेल नीर की एक बोतल बेचने पर वेंडर को कमीशन के रूप में 2 से 3 रुपये मिल पाता है। जबकि, अन्य कंपनियों की बोतलों पर कम से कम 5 रुपये की आमदनी हो जाती है। ऊपर से अतिरिक्त दाम भी वसूलते हैं।
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